Tuesday, July 27, 2010

Re: [aryayouthgroup] रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में उच्च न्यायालय ने किया फैसला सुरक्षित

मेरा अटल कथन:
यदि ईसाइयत और इस्लाम है तो राम नहीं रह सकते (कुरआन १७:८१) व् बाइबल (व्यवस्था विवरण, १२:१-३).
जज दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 द्वारा नियंत्रित हैं.  वह करेंगे जो राज्यपाल जोशी चाहेंगे. राज्यपाल जोशी वही चाहेंगे जो सोनिया चाहेगी और पोप भारत आ कर सोनिया को निर्देश दे गया गया है कि पूरे एशिया को ईसाई बनाना है.
जिन्हें राम चाहिए वैदिक पंथी बने. हम सोनिया भगायेंगे राम बचायेंगे.
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Yours faithfully,
Ayodhya Prasad Tripathi, (Press Secretary)
Aryavrt Government
77 Khera Khurd, Delhi - 110 082
Phone: (+91) 9868324025/9838577815
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Read my eBook 'Wary of Sonia on Web-site: http://www.aryavrt.com/wary-of-sonia
Christianity and Islam are criminal religions. They are not minorities. Instead we Vedic Panthies are minority among minorities. Protect us to salvage human races.
If you feel that this message be telecasted, donate us. Rush your contribution in the account of Manav Raksha Sangh Account No. 016001020168 ICICI Bank Ltd. Else keep ready for your doom. Remember! Whoever you are, you won't be able to save your properties, women, motherland, Vedic culture and even your infants. Choice is yours, whether you stick to dreaded usurper Democracy and get eradicated or survive with your rights upon your property, freedom of faith and life with dignity?
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2010/7/26 Trilokinath Bagi Bagi <tnbagi@gmail.com>
 



http://www.vhv.org.in/story.aspx?aid=3195
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में उच्च न्यायालय ने किया फैसला सुरक्षित

लखनऊ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने बहुप्रतीक्षित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के मुकदमे में सुनवाई पूरी कर फैसला सुऱक्षित कर लिया है। उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के न्यायाधीश क्रमशः न्यायमूर्ति एस.यू. खान, न्यायमूर्ति डी.वी. शर्मा एवं न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल हैं। चूंकि न्यायमूर्ति डी.वी. शर्मा सितंबर के अंत में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। इसलिए माना जा रहा है कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के बारे में फैसला सितंबर महीने के पूर्व कभी भी आ सकता है।

अदालत ने संबंधित पक्षों के वकीलों को पहले ही निर्देशित कर दिया था कि वह हर हालत में आज ही अपनी बात पूरी कर लें। इसलिए अदालत ने लीक से हटकर सोमवार को सायं 7 बजे तक अपनी सुनवाई जारी ऱखी।

इसी के साथ अदालत ने सभी पक्षों को अपनी मौखिक जिरह लिखित रूप में प्रस्तुत करने के लिए अंतिम तारीख 30 जुलाई निर्धारित की है।

उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के तीन न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ वर्ष 1996 से इस विवाद की मौलिक सुनवाई कर रही थी। मुकदमे में चार पक्षकार हैं। हिंदुओं की ओर से तीन पक्षकार हैं जिसमें एक प्रमुख पक्षकार विवादित परिसर में विराजमान रामलला स्वयं हैं। शेष श्री गोपाल सिंह विशारद और निर्मोही अखाड़ा हैं, जबकि मुस्लिम पक्ष की ओर से सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड पक्षकार है।

उल्लेखनीय है कि गोपाल सिंह विशारद ने रामलला के एक भक्त के रूप में निर्बाध दर्शन-पूजन की अनुमति के लिए जनवरी, 1950 ईस्वी में अपना मुकदमा फैजाबाद जिला अदालत में दायर किया था। वर्ष 1959 में निर्मोही अखाड़े ने अपना मुकदमा जिला अदालत में दायर कर अदालत से मांग की थी कि सरकारी रिसीवर हटाकर जन्मभूमि मंदिर की संपूर्ण व्यवस्था का अधिकार अखाड़े को सौंपा जाय। दिसंबर, 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड अदालत में गया। बोर्ड ने अदालत से मांग की कि विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित किया जाए, वहां से रामलला की मूर्ति और अन्य पूजा सामग्री हटाई जाएं तथा परिसर का कब्जा सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपा जाए।

जुलाई, 1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश श्री देवकीनंदन अग्रवाल ने एक भक्त के रूप में खुद को रामलला का अभिन्न मित्र घोषित करते हुए न्यायालय के समक्ष रामलला की ओर से वाद दाखिल किया। इस प्रकार रामजन्मभूमि के मुकदमे में रामलला स्वयं ही वादी बन गए। श्री अग्रवाल ने अपने वाद में कहा कि मेरे लिए तो जन्मभूमि स्थान ही देवता स्वरूप है। साथ ही कहा कि रामलला के विग्रह पर किसी का कब्जा नहीं हो सकता।

40 साल तक मुकदमा फैजाबाद जिला अदालत में लंबित पड़ा रहा। शीघ्र सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय के आदेश से सभी मुकदमे सामुहिक सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ को सौंपे गए।

इसी बीच 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा कारसेवकों की उग्र भीड़ ने जमींदोज कर दिया। अक्तूबर 1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने विवाद के मामले अंतिम निर्णय की सारी जिम्मेदारी ही उच्च न्यायालय के हवाले कर दी। तब से उच्च न्यायालय इस मामले की निरंतर सुनवाई कर रहा है। उच्च न्यायालय ने मामले की अबाध सुनवाई के लिए विशेष अदालत का गठन कर संपूर्ण मामला दो हिंदू और एक मुस्लिम जज की पूर्ण पीठ के हवाले कर दिया। उच्च न्यायालय ने मुकदमे से जुड़े सभी पक्षों के गवाहों के बयान सुने।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से वर्ष 1993 में एक प्रश्न पूछा गया था कि क्या विवादित स्थल पर 1528 ईस्वी के पहले कभी कोई हिंदू मंदिर था अथवा नहीं? इसी प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए उच्च न्यायालय ने विवादित परिसर की राडार तरंगों से फोटोग्राफी और पुरातात्विक खुदाई भी करवाई।

जजों के सेवानिवृत्त होते रहने के कारण उच्च न्यायालय की विशेष पीठ का लगभग 13 बार पुनर्गठन हुआ। अंतिम पुनर्गठन 11 जनवरी, 2010 को हुआ।

राकेश उपाध्याय। वीएचवी। नई दिल्ली ब्यूरो। 26 जलाई, 2010

 


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